Thursday, November 4, 2010

खॆनी की डिबिया

यह कोई घटना नहीं थी

दुर्घटना तो कतई थी ही नहीं

महज संयोग था कि हम खड़े थे सड़क के किनारे

और हड़-हड़, खड़-खड़ करते सामने से

गुज़र गया ट्रैक्टर


ट्रैक्टर के गुज़रने में भी

आख़िर क्या हो सकता था हमारे लिए

वो तो ड्राइवर के पासवाली जगह से गिरी थी

प्लास्टिक की नन्हीं-सी डिबिया

और बावलेपन में दौड़ गई ट्रैक्टर के पीछे


हमें अच्छा लगा

डिबिया का ट्रैक्टर के पीछे दौड़ना


ट्रैक्टर

शहरके बाहर जब किसी भट्ठे पर रुकेगा

उतरेंगे मजूर और ईंटों की लदान के ठीक पहले

जब कोई मजूर

अपने कमर के फेंटे पर ले जाएगा हाथ

पछताएगा और हारकर निहारेगा अपने साथियों को....


उसे क्या पता

किस गति से उसका पीछा किया था

इस नन्हीं-सी जान ने, किस अधीरता से दी थी

उसे आवाज़

2 comments:

Brajesh Kumar Pandey said...

behtarin kavita .pahli bar padh rha hoon .chunauti pr itna sarthak kh pana aapke hi vash ki baat hai.bikhare pade chhote chhote patton ko uthana aur khadona bna dene ka jadu aap hi kar pate hai .behtarin rachna .badhai!

Vishwa said...

aapki kavita padh baba nagarjun ki yaad aa rahee hai.aisi kavita ab aap hi likh sakte hain.advut chitran hai