Tuesday, October 26, 2010

जा रहा हूँ

मैं गाँव से जा रहा हूँ


कुछ चीज़ें लेकर जा रहा हूँ

कुछ चीज़ें छोड़कर जा रहा हूँ


मैं गाँव से जा रहा हूँ


किसी सूतक का वस्त्र पहने

पाँच पोर की लग्गी काँख में दबाए

मैं गाँव से जा रहा हूँ


अपना युद्ध हार चुका हूँ मैं

विजेता से पनाह माँगने जा रहा हूँ


मैं गाँव से जा रहा हूँ


खेत चुप हैं हवा ख़ामोश,

धरती से आसमान तक तना है मौन,

मौन के भीतर हाँक लगा रहे हैं मेरे पुरखे... मेरे पित्तर,

उन्हें मिल गई है मेरी पराजय,

मेरे जाने की ख़बर


मुझे याद रखना

मैं गाँव से जा रहा हूँ । 

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