Tuesday, October 26, 2010

देख कबीरा रोया

किसके आगे रोये कबीरा
किससे कहे दुःख


दिन दिन भर हाड खटाए
रात रात भर नीद ना आए
ऒर हाल
वह क्या बताए


किसी ने खरीद लिया जन्नत का सुख
किसी ने बेच दी पुरखो की नदी


कोइ खोल ले गया दरवाजे पर बधी गाय
कोइ उडा ले गया स्कूल से लॊट्ता बच्चा
किसी ने अस्मत लूटी
किसी ने जला दी दुकान


जब गीतो मे नही अट पाया दुःख
तो....
तो....
तो....
कबीरा रोया...
देख कबीरा रोया भाए
देख कबीरा रोया

3 comments:

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर...

संगीता पुरी said...

इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

Unknown said...

शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।

एक विचार : चाहे कोई माने या न माने, लेकिन हमारे विचार हर अच्छे और बुरे, प्रिय और अप्रिय के प्राथमिक कारण हैं!

-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
E-mail : dplmeena@gmail.com
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