बहुत चुटीली कविता .मन के गहरे दर्द की परतों को खोलती .
डराने, सहमाने वाली इस सोच का निष्कर्ष क्या रहा है..रोज-ब-रोज यही बात परेशान कर रही है कि क्या नीचता और प्रतिभा एक साथ रह सकती हैं...जवाबी पंक्तियों का इंतजार है...
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बहुत चुटीली कविता .मन के गहरे दर्द की परतों को खोलती .
डराने, सहमाने वाली इस सोच का निष्कर्ष क्या रहा है..रोज-ब-रोज यही बात परेशान कर रही है कि क्या नीचता और प्रतिभा एक साथ रह सकती हैं...जवाबी पंक्तियों का इंतजार है...
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