Tuesday, October 26, 2010

उधार

मैं नहीं जाऊँगा दुकान पर,

मुझे तो पहचानता भी नहीं कमबख़्त दुकानदार


जाऊँगा

जाऊँगा और कहूँगा उधार दो

दो किलो चावल.. एक किलो प्याज

पूछेगा कौन हैं आप, तो क्या कहूँगा

बिन पहचाने

कैसे कोई दे देगा सामान


जाऊँगा और कहूँगा

कहूँगा कि दुकानदार महोदय

वो जो मोटी-मोटी,

नाटी-नाटी और

थुल-थुल सी औरत आती हैं,

वो जो ले जाती हैं अक्सर उधार,

उन्हीं का पति हूँ मैं वो घर में नहीं हैं आज


नहीं,

मैं नहीं जाऊँगा उस दुकानदार के पास,

जाने क्या सोचेगा

ना भी तो कह सकता है कमबख़्त,

कोई सबूत नहीं मेरे पास कि मैं ही मरद हूँ उनका

औरत बेवकफ़ हो, तो ऐसा ही होता है..

समान रख के जाती

तो क्या बिगड़ जाता..


अब किस मित्र का खटखटाऊँ दरवाजा

कहूँ- उधार दो

पत्नी घर में नहीं है आज

पत्नी घर में नहीं

और रुपए भी नहीं

और समान ज़रूरी-

कहीं तो जाना ही होगा इस घर के लिए आज

अरे!


यह तो मैं सोच भी नहीं सकता था कि

दुकानदार चलकर आएगा मेरे घर,

कहेगा- नमस्कार वो जो आपकी मैडम हैं,

बोल गई थीं कुछ सामान

रजिस्टर भी देख लें,

इसमें लिखा है आपका ही नाम...।

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