Sunday, November 7, 2010

चूहे दानी

टूट गई चूहेदानी
टूट गया बरसो का संचित यकीन


दीवारों को जंग खा गई
लाचार है लौह-तीलियाॅ
कह भी नही पाती
कि चैकस नहीं रही अब उसकी चोंच


घर में गेहूॅ के बोरे से
कपड़े तक
कुछ नहीं नहीं सलामत ,
हवा में उड़ते है कविताओं के पन्ने
गांधी की आत्मकथा का हाल देख आती है रूलाई
और यह कैसे बयान करूॅ कि
हमारी नजरो के सामने
एक चूहा आया
रसोई में घुसा , ढक्कन हटाया , रोटी निकाला
और चूहे दानी में घुसकर खाता रहा
इतमिनान से


भाड़ में जाय ऐसी चूहे दानी


मगर चूहे ?

चुहे
किसी से नहीं डरते


बिल्ली की
गर्दन में घंटी बांध देती है
कुतर देते है बांस...
बांसुरी वाले का


क्या सचमुच कोई अयस्क नहीं
धरती के गर्भ मे


क्या सचमुच कोई कारीगर नहीं
किसकी चाकरी मे लगा है विज्ञान


सुनो
अरे कोई तो सुनो..ं


देखो...
अरे कोई तो देखो

नूनी खा गया
नींद मे सोये
मेरे अबोध बेटे की
लोढ़े की तरह एक मोटा चूहा।


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