पगहा थमा देने के बाद
आख मिलाने की
हिम्मत नही हुई
घर -गइया से
ईमरितवा आम के तने पर
जब चल रही थी
कुल्हाडी
ऒर आरी
कोई सिसक रहा था मेरे भीतर
रुपए थामते काप रहे थे
मेरे हाथ
हलक मे नही उतर सके
कचहरी के
मीठे ऒर स्वाद भरे रसगुल्ले
पुरखो का खेत बेच देने के बाद
3 comments:
Adarniya Pandit ji Charan Sprash,
Bahut nik kavita likhale haneen aap.
Bhaut hi nimman kavit.
अच्छी कविता
आपको सपरिवार दिपोत्सव की ढेरों शुभकामनाएँ
मेरी पहली लघु कहानी पढ़ने के लिये आप सरोवर पर सादर आमंत्रित हैं
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